हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन पध्दति
आइये हम जानते हैं हिंदी साहित्य की लेखन विधियों के बारे में
इतिहास = इति + ह+ आस
किसी भी इतिहास को समझने के लिए प्राचीन घटित घटनाओ और उस समय के रचनाकारो की रचनाओं का अध्यन करना पड़ता हे और हमें हिंदी साहित्य का इतिहास जानने के लिए उसे समय की इतिहास लेखन पध्दति को जानना होगा और समझना होगा हालांकि हर पध्दति का अपना एक महत्व हे परन्तु सबसे सटीक और आज के मानकों के अनुसार जो सही वह सबसे सटीक हे आगे हम इन सभी पध्दति को समझेंगे।
आप इस लेख में जानेंगे हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन पध्दति के बारे और इन पध्दति में कोनसी पध्दति दोष पूर्ण हैं और कोनसी सबसे लोकप्रिय हैं आप इस लेख को पढ़ने के बाद इतिहास लेखन की पद्धति सम्बंधित संकाओ का हल निकाल लेंगे
इतिहास के जनक – इतिहास के जनक के रूप में हेरोडोटस को सबसे पहले प्राथमिकता दी जाती है
भारत में इतिहास के जनक – महर्षि वेद व्यास को हिंदी इतिहास का जनक माना जाता है।
- महाभारत महाभारत इतिहास ग्रंथो में से सबसे प्राचीन ग्रंथो में से एक है
- वेदव्यास – जी के अनुसार – धर्मार्थ काममोक्षेषु उपदेश समन्वितम् ! ,सत्याख्यानं एति इतिहास समुच्यते’
- ” कार्लायल “– इतिहास एक ऐसा दर्शन हे जो द्रष्टान्त के माध्यम से शिक्षा देता हैं
- ” चाल्स डार्विन ” – सृष्टि का बाह्य विकास उसके आंतरिक विकास का प्रतिबिम्ब है , इस आंतरिक प्रक्रिया को खोजने का नाम ही इतिहास हे।
- रामस्वरूप चतुर्वेदी – कवि के कार्यो का विकास प्रक्रिया में न्यायोक्ति दिखाना ही इतिहास हे।
- आचार्य शुक्ल – प्रत्येक युग का साहित्य वहां की जनता की चित्तवृत्ती का संचित प्रतिबिम्ब है।
** इतिहास लेखन की पध्दत्तिया ** यह 6 प्रकार कि हैं जो निम्नलिखित हे
आईये इन्हे विस्तार से जानते हैं
1 .वर्णानुक्रम पध्दति – इस पध्दति में कवियों का परिचय वर्ण कर्म के अनुसार बताया जाता हे तो उसे वर्णानुक्रम पध्दति कहते हैं। सबसे पहले इस पध्दति का उपयोग गार्षा दा तासी के द्वारा फ्रेंच भाषा में ” इस्तावर द ला लित्तरेत्तर येंदुई ऐदुस्तानी नामक ग्रांथ लिखकर किया गया है।
- नोट :- * इस पध्दति में दिनांक ,सन का कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
- *हिंदी साहित्य का पहला ग्रंथ माना जाता है।
2 .कालानुक्रम पध्दति – इस पध्दति में रचनाकारों का वर्णन काल ( समय ) के अनुसार प्रस्तुत किया जाता हे , यह सबसे प्राचीन लोकप्रिय पध्दति हे
- जॉर्ज ग्रियर्सन – ने द मॉर्डन वर्नाकुलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान में इसका प्रयोग किया था
- मिश्र बंधुओ – द्वारा भी इसका उपयोग किया गया
3 .वैज्ञानिक पद्धति – इस पध्दति में प्रवृत्तियों का विश्लेषण विकास क्रम को ध्यान में रखकर किया जाता हे ,इसके रचनाकारो पर उस समय की परिस्थितियों का प्रभाव देखा जाता है।
- ** सबसे पहले इसका उपयोग आचार्य गणपति चद्रगुप्त द्वारा ” हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास ” में किया गया
4 . विधेयवादी पध्दति – इस पध्दति के जनक ( प्रवर्तक ) तेन महोदय हे , भारत में इसके प्रयोगकर्ता आचार्य रामचंद्र शुक्ल हैं जिन्होंने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ ग्रन्थ सन – 1929 लिखा
- इसके प्रधान तत्व (1). जाति (2) .वातावरण (3) क्षण
5 .आलोचनात्मक पध्दति – ** इस पध्दति में रचना के परिचय से ज्यादा उसके गुण दोषों की विवेचना की जाती हे।
- ** शास्त्रीय मान्यताओं के आधार पर रचनाओ की समीक्षा की जाती हैं।
- ** इसके प्रयोगकर्ता – ड़ॉ. रामकुमार वर्मा ने हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास ग्रन्थ लिखकर किया
6 .समाजशास्त्रीय पध्दति – ( मार्क्सवादी पध्दति ) इस पध्दति में रचनाकारों के परिचय के साथ साथ इस बात पर बल दिया जाता हे की उसने समाज से क्या ग्रहण किया तथा समाज पर उसका क्या प्रभाव पढ़ा।
- ** इसके प्रयोजकर्ता हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं
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इसके अगले भाग पर हम हिंदी साहित्य के स्रोत के बारे जानेंगे जिसे हम विस्तार पूर्वक पढ़ेंगे तो मिलते हैं अगले लेख पर तब तक के लिए जय हिन्द जय भारत — भारत माता की जय