हिंदी साहित्य का इतिहास भाग 1

श्री गणेशाय नमः

नमस्कार हिंदी प्रेमी बन्दुओ आप सभी का स्वागत है आज इस लेख पर हम जानेंगे की हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन कैसे प्रारंभ होता है और कहां से प्रारंभ होता है इसी जानने के लिए मैं उमेश सूर्यवंशी मेरी कुछ नोट्स और कुछ पुस्तकों के अध्ययन के बाद उनमें से विशेष विशेष तथ्यों को ढूंढ कर अपने लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर इसे प्रस्तुत कर रहा हूं आप चाहे तो इस लेख से कुछ ज्ञान अर्जित कर सकते हैं और इसमें कुछ कमियां हो तो मुझे कमेंट के माध्यम से अवगत करा सकते हैं तो र्र् आइये हम जानते हैं हिंदी साहित्य के इतिहास के बारे में

इसे समझने के लिए हम सबसे पहले इतिहास को समझना होगा इतिहास क्या है

● इतिहास 

        इति+ह+आस

इति = ऐसा

ह = निश्चित ही 

आस = घटित हुआ

• इतिहास के जनक हेरोडोट्स को माना जाता है

★भारत में इतिहास का जनक महर्षि वेदव्यास को हिंदी साहित्य का जनक माना जाता हे – महाभारत प्राचीनतम इतिहास ग्रंथ है जो की वेदव्यास जी द्वारा लिखा गया था जो सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है 

★वेदव्यास जी द्वारा कही गई उक्ति…

धर्मार्थ काम‌मोक्षेषु उपदेश समन्वित्म् । सत्याख्यानं इति इतिहास समुच्यते ।।                (वेदव्यास)

★ कुछ विद्वानों द्वारा इतिहास की परिभाषा दी गई है जो इस प्रकार है — 

◆ इतिहास एक ऐसा दर्शन है जो दृष्टांत के माध्यम से शिक्षा देता हैं।                           ( कार्लायल )

◆ सृष्टि का बाह्य  विकास उसके आंतरिक विकास का प्रतिबिंब है इस आंतरिक प्रक्रिया को खोजने का नाम ही इतिहास है                               ( चार्ल्स डार्विन )

◆ कवि के कार्यों का विकास प्रक्रिया में न्यायोक्ति दिखाना ही इतिहास है          (डॉ .रामस्वरूप चतुर्वेदी)

◆ प्रत्येक युग का साहित्य वहां की जनता की चित्र वृत्ति का संक्षिप्त प्रतिबिंब है              (आचार्य शुक्ल)

★  इतिहास को अलग-अलग विद्वानों ने अपने-अपने हिसाब से इसका वर्णन किया है अब आते हैं  इतिहास को लिखा कैसा गया अर्थात इसे लिखने की पद्धति के बारे में समझते हैं इतिहास लिखने की कुछ पद्धतियां है जो निम्न प्रकार है….

इतिहास लेखन की पद्धतियां 

1. वर्णानुक्रम पद्धति 

2. कलानुक्रम पद्धति 

3. वैज्ञानिक पद्धति 

4. विधेयवादी पद्धति 

5. आलोचनात्मक पद्धति 

6. समाजशास्त्रीय पद्धति

1. वर्णानुक्रम पद्धति –

जब कवियों का परिचय वर्ण क्रम के अनुसार बताया जाता है तो उसे वर्णानुक्रम पद्धति कहते हैं ( यह एक अमनोवैज्ञानिक पद्धति है या दोषपूर्ण हे ) क्योंकि इसमें कवियों का जो क्रम है वह वर्ण के अनुसार है उनके जन्म के अनुसार नहीं मतलब समय के अनुसार नहीं है

सबसे पहले इस पद्धति का उपयोग गार्सा-द-तासी द्वारा फ्रेंच भाषा में किया गया ।

★ “इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐंदूई ऐ ऐंदूस्तानी” ★ नामक ग्रंथ इसी पद्धति में लिखा गया है जो की हिंदी साहित्य का पहला ग्रंथ माना जाता है

  इस ग्रंथ का प्रकाशन दो संस्करणो में किया गया जो इस प्रकार है

1. प्रथम संस्करण- इसके भी दो भाग है

 1. प्रथम भाग ( 1839 ई.)

 2. द्वितीय भाग ( 1847 ई. )

2. द्वितीय संस्करण – द्वितीय संस्करण के तीन भाग है जिनमें से प्रथम दो भागों को एक ही माना गया है

 1. प्रथम भाग ( 1870 ई. )

 2. द्वितीय भाग ( 1870 ई. )

 3. तृतीय भाग ( 1871 ई. )

प्रकाशन संस्था –  ओरिएंटल ट्रांसलेशन कमेटी आयरलैंड (फ्रेंच भाषा )

वर्णानुक्रम पध्दति-  अर्थात अ से…….. ह  तक

◆ इस ग्रंथ में प्रथम कवि अंगद को माना गया है और अंतिम कवि हेमंत को

◆ इसमें कुल  738 कवि के बारे में बताया गया है जिसमें से हिंदी के 72 कवि हैं

गार्सा द तासी के इतिहास ग्रंथ का हिंदी में अनुवाद डॉक्टर लक्ष्मी सागर वाष्र्णेय ने  ” हिंदूई साहित्य का इतिहास “के नाम से किया है ।

2. कालानुक्रम पद्धति –

वह पद्धति जिसमें रचनाकारों का वर्णन वर्णन काल (समय) के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है उसे कालानुक्रमी पद्धति कहते हैं 

● यह सबसे लोकप्रिय पढ़ती है 

● जॉर्ज ग्रियर्सन के द्वारा द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर का हिंदुस्तान में इसका प्रयोग किया गया था

3. वैज्ञानिक पद्धति – वैज्ञानिक पद्धति वह पद्धति है जिसमें प्रवृत्तियों का विश्लेषण विकास क्रम को ध्यान में रखकर किया जाता है उसे वैज्ञानिक पद्धति कहा जाता है

• इस पद्धति में रचनाकार पर उस समय की परिस्थितियों का प्रभाव देखा जा सकता है

• इस पद्धति के सबसे पहले प्रयोग कर्ता आचार्य गणपति चंद्रगुप्त है – जो ग्रंथ है हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास 

4. विधेय वादी पद्धति – 

इसमें प्रधान तत्व जाती,वातावरण, और क्षण होते हैं।

• इस पद्धति के जनक तेन महोदय को माना जाता है

• भारत में प्रयोग करता आचार्य रामचंद्र शुक्ल जिन्होंने “हिंदी साहित्य का इतिहास” नामक ग्रंथ लिखा 1929 में

• यह पद्धति सर्वश्रेष्ठ पद्धति मानी जाती है

5. आलोचनात्मक पद्धति –

इस पद्धति में रचना के परिचय से ज्यादा उसके गुण दोष की विवेचना की जाती है शास्त्री मान्यताओं के आधार पर रचनाओं की समीक्षा की जाती है

• प्रयोग करता डॉक्टर रामकुमार वर्मा 

• ग्रंथ – हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास

6. समाजशास्त्रीय पद्धति –

इसे मार्क्सवादी पद्धति भी कहते हैं इस पद्धति में रचनाकारों के परिचय के साथ-साथ इस बात पर बोल दिया जाता है कि उसने समाज से क्या ग्रहण किया तथा समाज पर उसका क्या प्रभाव पड़ा।

• प्रयोग करता – हजारी प्रसाद द्विवेदी

इसके बाद हम अगले लेख पर पढ़ेंगे की हिंदी साहित्य के स्रोत क्या है और उससे संबंधित कुछ बातें मिलते हैं अगले लेख पर जय हिंद

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